कवि- मीठेस निरमोही
कवि परिचय : 30 सितम्बर, 1951 गांव राजोला खुर्द
(पाली) राजस्थान में जन्म। आधुनिक राजस्थानी कहानी और कविता के प्रतिनिधि
हस्ताक्षर। संपादक-अनुवादक के रूप में विख्यात। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं
संस्कृति अकादमी, बीकानेर से पुरस्कृत। वर्षों साहित्यिक पत्रिका “आगूंच” का संपादन-प्रकाशन,
"कथा" संस्था के सचिव। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। चर्चित राजस्थानी
पुस्तकें- "आपै रै ओळै-दौळै (कविता संग्रह) एवं "अमावस, एकम अर चांद" (कहानी
संग्रह) । हिंदी में “चिड़िया भर शब्द” तथा “चेहरों की तख़्तियों पर” पुस्तकें प्रकाशित।
स्थाई संपर्क :
राजोला हाऊस, ब्राह्मणों की गली, उम्मेद चौक, जोधपुर।
मोबाइल : 09549589222 ई-मेल : umaid1954u@gmail.com
थार-1
फैल जाता पल-भर
में
हो उठता उग्र
क्षण-भर में
जैसे खेलते-खेलते
बदलता है तू
चेहरे।
लगता है-
मनुष्यों से
जोड़ लिए
रिश्ते!
०००
थार-2
जमीं-आसमां
जितनी फौलादी
तुम्हारी
कद-काठी।
हवा जैसे
सांस तुम्हारी।
समुद्र के उनमान
फैला है तू।
ना कभी थकता
ना कभी हारता।
वाह-वाह
मरुधरा के मानवी।
०००
उत्साह
दिन निकलते ही
नापने लग जाता
आकाश
दौड़ते-दौड़ते
पहुंचता है-
अनंत अपार।
लेकर दाना
लौटता है
चीरते हुए
अंधेरा।
अपने भाग्य की
करते हुए सराहना
नृत्य करता-
घोंसला।
०००
पहचान
हवाओं को मुस्कान
और राग,
सौंप दें पेड़ों
को महक।
स्वतः जंगल
पा जाएगा
अपनी पहचान।
०००
अस्मिता
तुम्हारे मंदिर
गूंजती शंख-ध्वनि
मेरे घर-आंगन
बजती
थाली कांसी की।
तुम्हारी और मेरी
यही अस्मिता की पहचान।
हमीं से तो है-
यह नाद
गूंजता हुआ
संपूर्ण आकाश में
क्यों मेरे देव ?
०००
मां
बुलाकर मुझे
धैर्य ही तो
सौंपना चाहती थी
तुम।
तुम्हें और
तुम्हारी कोख को
यह असहास कि
सिर्फ कष्ट पाने से ही
कोई मां, नहीं बन
जाती मां।
दागदार भी हो जाती
है
जब खुद की औलाद
ही भूल जाए
पुत्रों को जन्म
दे कर भी
कहलाती निपूती तुम।
परन्तु यह क्या
मुझे देख कर सामने
डूबी गहरे
वात्सल्य में
भूल गई अपनी
अस्मिता ई तुम मां !
तभी तो मैं
कोई शोक-गीत रचने
से पहले
चाहता हूं रच
लेना तुम को
मेरी मां सुनो !
कि फिर ना दागदार
हो कोई कोख।
०००
अनुवाद : नीरज दइया
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